भैरवमठ के मुख्य प्रखंड

1. कालभैरव मंदिर

वस्तुतः संपूर्ण विश्व मैं एसा कोई भी भारतीय न होगा जिसके पितृ     न हो, जिसकी शक्ति रुपेण कुल देवी न हो तथा जिसका शिव से संबंध न हो। इन सभी की पूजा उपासना बिना  भैरव की पूजा के पूर्ण नही होती है।

कालभैरव अतुल्य पराक्रम और असीम तेजिस्विता के देवता हैं। धर्म की दृडता से रक्षा तथा अधर्म का प्रचंडता से संहार करते हैं। आज जब धर्म, संस्कृति और राष्ट्र को सहस्त्रों षडयंत्रों के द्वारा विनष्ट करने का प्रयास किया जा रहा है तथा भारतियों के जीवन और आस्थाओं को मलीन  किया जा रहा है तब एकमात्र कालभैरव की प्रचंड शक्ति ही भारत और भारतीयों की रक्षा और पुनरूत्थान कर सकती है।

कालभैरव आगम के देवता है। वर्तमान समय में पूरे भारत आगमोक्त रीती से बना कोई भी भैरव मंदिर नही है। 3000 बर्ष पश्चात मूल पध्दति द्वारा स्थापित यह पहला भैरव मंदिर होगा।

इस मंदिर मैं कालभैरव के मात्र एकबार दर्शन कर भारतीय

संपूर्ण जीवन के लिय भैरवोचित पराक्रम तथा तेजिस्विता ग्रहप कर सकेंगे। 

2. धर्मचक्र मंदिर

वस्तुतः धर्मचक्र सनातन धर्म का मूलाधार है। कृतव्यहीनता तथा षडयंत्रों के कारण 3000 बर्ष पूर्व इसका आलोपीकरण हो गया, जिस कारण राष्ट्र, संस्कृति और धर्म पतित हुए।

धर्मचक्र मंदिर द्वारा 3000 बर्ष पश्चात धर्मचक्र का प्राकाट्य होगा। इसी के साथ धर्मचक्र कि वैश्विक प्रवर्तन प्रारंभ हो जाएगा, जिसका परिणाम होगा राष्ट्र, संस्कृति और धर्म का  पुनरुत्थान। दूसरा परिणाम होगा अतुल्य समृद्ध भिरतीय।

धर्मचक्र के विषय में अधिक जानने के लिए नीचे दिये लिंक पर क्लिक करें।


3. सार्थक गौशाला

लागूलागूइसलागूलागूइसइसइस प्रखण्ड में गौसेवा के साथ गौसेवा तथा गौरक्षा पर शोध तथा योजना कार्य काए जाएंगे। गौसेवा तथा गौरक्षा से संबंधित विधी और कानून को संवेधानिक रुप से लागू कराने का कार्य किया जाएगा। गौसेवा के बिना उत्थान कार्य कदापि शंभव नही है।

4. यज्ञशाला

इस यज्ञशाला में उच्चस्तरिय तीव्र और प्रचंड यज्ञ संपन्न किये जाएंगे। जिससे प्रछन्न भारतिय चेतना पुनः विश्वविस्तार प्राप्त कर सके। यज्ञोत्सर्जित यह तीव्र और प्रचंड चेतना सनातन धर्म संबंधित समस्त षडयंत्रों को भस्मीभूत कर वेश्विक धरातल पर सनातन धर्म की पुनर्स्थापना करेगी

5. कर्मठ आश्रम

इस आश्रम के द्वारा सनातन धर्म और संस्कृति को नष्ट करने के लिए चलाए जा रहे षडयंत्रों को निर्मूल करने के लिए संघर्ष और कार्य किए जांएंगे। आश्रम के प्रतिनिधि समस्त विश्व में जाकर वहां की प्रजाओं को सनातन थर्म में दीक्षित करेंगे।